नाम में क्या रख्खा है साथी,
कृष्ण कहो या उनको राम,
धर्म हो मेरा चाहे जो भी,
प्रभु के आगे बस कर्म प्रधान,
जैसा कर्म करोगे जग में,
वैसा फल देंगे भगवान,
हिन्दू, मुश्लिम, सिक्ख, इसाई,
उनके समक्ष सब एक समान,
जाती बनाये बस दो ही उसने,
नर-नारी! दृष्टि में उसके नहीं कोई प्रधान,
अन्तर किया नहीं जब उसने,
मैं-तुम अन्तर कर बनना चाहें क्यों भगवान?
नाम में क्या रख्खा है साथी,
अकबर कहो या उसको राम,
कोई कहता "अल्लाह-हु",
कोई कहता "हे भगवान"
धर्म हो मेरा चाहे जो भी,
प्रभु के आगे बस कर्म प्रधान,
नाम में क्या रख्खा है साथी,
कृष्ण, ईशु, अल्लाह या राम!!
अमित~~
Wednesday, June 9, 2010
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5 comments:
कर्म ही सर्वोपरि है..लेकिन लोग समझते कहाँ हैं? नाम के पीछे ही भागते हैं...अच्छी रचना
कमेन्ट से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें..टिप्पणी देने में सरलता होगी
dhanyawaad sangeeta ji, or aapke anurodh par maine word verification hata di hai..
amit~~
ek sarthak rachna.........:)
badi pyari baat kahi tumne, karm se hi naam banta hai......ab dekho na mera naam MUKESH hai lekin main mukesh ki tarah surili awaj thori nikal sakta......:D
God bless dear......
Naam me kya rakkha hai saathi, comment yahi hai ki its great!!
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