Monday, June 14, 2010

सरफरोशी

हिन्द देश के सरफरोशों को सलामी दीजिये,
मर मिटे जो अपने वतन पर,
उनको पयामी दीजिये,
यूँ तो पत्थरों में भी बसते हैं हमारे देवता,
देवता बस उनको समझ कर एक बार तो पुजिये!
देवों ने जो कर न दिखाया,
वो कर गुजरे वो नवजवाँ,
शीश अपना मातृभूमि को चढ़ा कर,
हो अमर वो चल दिए,
हिन्द देश के सरफरोशों को सलामी दीजिये!
खून जलता था वो उनका,
माँ के जंजीरों को देख कर,
रक्त अपना बहा कर,
सर पर बाँध कफ़न वो चल दिए,
हिन्द देश के सरफरोशों को सलामी दीजिये !
हमने दी न एक रत्ती,
वो तो जीवन दे गए,
जी सकें हम सर उठा कर,
काम ऐसा वो कर गए,
हिन्द देश के सरफ़रोशों को सलामी दीजिये!
२१ तोपों की सलामी से न होगा ये क़र्ज़ कम,
सर की बलि के साथ
रक्त के कतरों के संघ ये क़र्ज़ कम कीजिये,
भ्रष्टता और उग्रवाद को दफ़न कर,
माँ के उन सपूतों को याद कीजिये,
हिन्द देश के सरफ़रोशों को सलामी दीजिये!
यूँ कुछ तकल्लुफों की खातिर,
माजरे वतन का सौदा ना कीजिये,
सर उठा कर जी सके ये मुल्क, काम ऐसा कीजिये,
उन शहीदों की समाधी पर काम ये फूलों का कर जायेगा,
उन शहीदों के संघ हम सभी का नाम यूँ रह जायेगा,
मर मिटेंगे देश पर तो, कफ़न भी तिरंगी मिल पायेगा,
देशवाशियो के आँखों से आंशु फूल बन गिर जायेगा,
अमन में रह सके ये हिन्द, कुछ काम ऐसा कीजिये,
हिन्द देश के सरफ़रोशों को सलामी दीजिये!
देवता बस उनको समझ कर एक बार तो पुजिये!!






अमित~~

Wednesday, June 9, 2010

नाम!

नाम में क्या रख्खा है साथी,
कृष्ण कहो या उनको राम,
धर्म हो मेरा चाहे जो भी,
प्रभु के आगे बस कर्म प्रधान,
जैसा कर्म करोगे जग में,
वैसा फल देंगे भगवान,
हिन्दू, मुश्लिम, सिक्ख, इसाई,
उनके समक्ष सब एक समान,
जाती बनाये बस दो ही उसने,
नर-नारी! दृष्टि में उसके नहीं कोई प्रधान,
अन्तर किया नहीं जब उसने,
मैं-तुम अन्तर कर बनना चाहें क्यों भगवान?
नाम में क्या रख्खा है साथी,
अकबर कहो या उसको राम,
कोई कहता "अल्लाह-हु",
कोई कहता "हे भगवान"
धर्म हो मेरा चाहे जो भी,
प्रभु के आगे बस कर्म प्रधान,
नाम में क्या रख्खा है साथी,
कृष्ण, ईशु, अल्लाह या राम!!




अमित~~