Saturday, February 13, 2010

ganga jal

dev-nadi,bhagarathi,sursari,mandakani or na jaane kitne he naamo se jaane jane wali GANGA,jise ki purv-uttar me GANGA MAIYA v kaha jata hai, jiske jal ko amrit ke samtulya darja de kar log na kewal grahan karte hai,balki moksh paane ke liye usme snaan v karte hai,jis ganga ke jal ko log kawar me baandh kar,milo dur se paidal chal kar shiv ke alag alag dhamo me lakar shiv ke upar na kewal arpan karte hai,balki har tarah ke puja-paath or archana ko jiske bina adhura mana jata hai,jiski mitti tak ki puja ki jaati hai or jisme har saal laakhon nahi,balki karodon shradhalu dubki laga kar khud ko pavitra karte hai,jisme marnoprant har hindu ki asthiyan awasya bahai jaati hai taaki use moksh mil sake,to fir usi GANGA ka jal aakhir kyu har us hindu ko pilaya jata hai,jo maran saia par let kar apni aakhiri saanse gin raha hota hai?

Kya use wo ganga jal kewal is liye pilaya jata hai,ki wo jal uske gale me ja kar atak jaye or uski jo kuch gini-chuni,kast bhari tuti-futi saanse bachi hui hain,wo bhi ruk jaye,or use jald se jald kast bhare uske is jivan se mukti mile?

Ya fir use wo jal is liye pilaya jata hai,ki ganga ka jal uske andar jaate he use ek naiyi shakti mil jaati hai,jisse use moksh ki praapti hoti hai saath he uske jivan bhar ke paap ek pal me dhul jaate hai or swarg ke darwaje uske liye khud-b-khud khul jaate hai?

Agar ganga ke jal ke ek dhaar me itni shakti hai,to jo ganga marte vyakti ke gale me utar kar use shakti pradaan kar sakti hai, wo jivit vyaktiyo ke pida ko kyu nahi har leti? Kyu nahi uske jal se logo ke paap or dukh such me dhul jaate hai, kyu nahi usme snaan karke log rog mukt ho jate hai?

mai janta hu ki mere is kathan ke kuch hisson se kai log ittifaak nahi rakhte honge or shayad ispar beahdd aitraaz bhi jatayenge,lekin fir bhi aap sub se anurodh hai ki apne vichaar yaha avasya prakat kare,or GANGA ke sahi matlab or maksad ko samjhe or samjhaye.







amit~~

"its your problem"

प्राचीन काल में जब विश्व को ज्ञान और विज्ञान की एक धुरी तक का पता नहीं था, तब से ही भारत ने अपने युवा पीढ़ी को गुरुकुल में शिक्षा दे कर न जाने कितने ही विद्वान् और ग्यानी पैदा किये, हमारे वेद, उपनिषद, पूरण के साथ साथ पंचतंत्र तक यही बताते हैं की चाहे वो परशुराम हों या राम, अर्जुन हों या एकलव्य, गौतम बुद्ध हो या भरत , हर किसी ने गुरुकुल में ही रह कर शिक्षा ग्रहण की, और अपने अपने समय के महान ज्ञानियों में गिने गए, और आज भी हमारे समाज में लोग इनकी वीरता और विद्वता की गाथा गाते हैं, और अब भी बच्चों को स्कूलों में इनकी वीरता के पाठ पढ़ाये जाते हैं, लेकिन क्या यह पाठ पढ़ाने वाले आज के गुरुकुल के गुरु ये भूल गए हैं की इतिहाश में कभी द्रोणाचार्य ने युधिस्ठिर के लगातार एक ही पाठ कई बार समझाने पर भी न समझ में आने पर ये न कहा था की , "its your problem" , इतिहास गवाह है की जहाँ कृष्ण जैसे तीब्र बुद्धि वाले शिष्य मोजूद थे वहीँ सुदामा जैसे कम तीब्र या मंदबुद्धि विद्यार्थी भी मौजूद थे, पंचतंत्र की कहानियों का रहस्य तो आज भी स्कूलों में शिक्षक बड़ी शान से विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं की ये कहानियां राजा के ५ मुर्ख बालकों को विद्वान् बनाने का एक सबसे बड़ा श्रोत थीं, गुरुकुल के जीवन को आज के शिक्षक भले ही कठोर बताते हों, किन्तु वो जीवन आज के शिक्षण संस्थानों के जीवन से कई गुना बेहतर और सुलभ हुआ करता था, आज के समय में बच्चों का विकाश करने के नाम पर उन्हें केवल दबाया जा रहा है, fair copies, rough copies, reports, projects, homeworks, , uniform, class tests, exams, persentation, fees, यहाँ तक की खेलने तक पर पाबन्दी लगा कर उनके विकाश को रोका जा रहा है, इतने ही दबाव जैसे कम नहीं थे की साथ ही होम वर्क न करने या अधुरा किये जाने पर शिक्षकों की बेतहाशा मार झेल रहे है आज के बच्चे, पाठ न समझ आने पर उन्हें शिक्षकों से जवाब मिलता है "its your problem".

ये तो थीं स्कूलों की बात, अब जरा कॉलेजेस पर नज़र डालिए, विद्यार्थियों को कॉलेज में दाखिले के लिए पहले फॉर्म भरना पड़ता है, फिर एक प्रतियोगिता परीक्षा , इसके बाद नया ढोंग जिसे नाम दिया गया है "counseling" का! कई बार कई एक मेघावी छात्र इसी काउंसेलिंग का शिकार बनता है और उसे कॉलेज में पैसे की कमी और बढती हुई घुश्खोरी के वजह से दाखिला नहीं मिलता, अब बचे वो, जिन्हें दाखिला मिल गया है, लेक्च्र्ज़ , प्रक्टिकल क्लास्सेस , रिपोर्ट्स, अत्टेंदेंस, प्रोजेक्ट, फॉर्म फिलाप,रेग्स्त्रेसन जैसे चक्रवियुह में हर छात्र कहीं न कहीं फंस ही जाता है,कुछ होते हैं जो फसने के लायक होते हैं,तो कई मेघावी छात्र बीमार रहने या फिर पैसे की कमी के कारन इस चक्रवियुह में इस बुरी कदर फंसते हैं की निकल नहीं पाते और नतीजतन उन्हें अपने नामांकन से हाथ धोना पड़ता है, कॉलेज या शिक्षक से गुहार लगाने पर उन्हें एक ही जवाब मिलता है "its your problem"

अब आप ही बताइए, इतने दबाव में रह कर भी अगर किसी व्यक्ति को ये एक ही tag line हमेशा सुनाया जाये तो वो खुद को असहाय न समझे, मजबूर न समझे तो क्या समझे, उसपर से कई बार माता पिता की जरुरत से ज्यादा आशाएं और अपेक्षाएं, जिनपर खरा न उतर पाने पर अलग से फटकार, डांट और नाराज़गी!


और अब भी अभिभावक, शिक्षक और सरकार अपने अपने आँखों में पट्टी बाँध कर ये पूछते है एक दुसरे से, की आखिर बच्चों में आत्महत्या करने की दर साल दर साल बढती क्यूँ जा रही है? अगर इस सवाल के जवाब के तौर पर उनसे वापिस ये कहा जाये, "its your problem" तो उनका मुह पक्का देखने लायक होगा उस वक़्त!

समय के साथ बदलाव तो प्रकृति का नियम है, लेकिन उस नियम को इस कदर न ही लागु किया जाये की भीषण परिणाम सामने आ कर खड़े हो जाएँ, तो ही बेहतर होगा,सिक्षाको का रवैया भी विद्यार्थियों के प्रति शख्त रहना जरुरी है, लेकिन मानवता और ज्ञान दोनों यही कहते हैं, की हर बात के होने के पीछे के कारण को जाने बिना किसीको सजा देना या tag line सुना देना सारा सर अमानवीय व्यवहार ही है! कई बार सजा देना भी बेहद जरुरी हो जाता है, लेकिन शिक्षा और मानवता की कसौटी यही कहती है की सजा भी इसी दायरे में दी जाये की उसका कोई दुष्परिणाम न निकले, अगर आज के अभिभावक , शिक्षक, और सरकार आने वाली पीढ़ी को नष्ट होने से और आत्महत्या जैसे कारणों से बचाना चाहते हैं, तो इस विषय पर गंभीरता से सोचने की बेहद जरुरत है , ये ही समय का तकाजा है और मांग भी, साथ ही "its your problem" जैसे taglines को जड़ से उखाड कर फेकना ही होगा, तब ही एक सुन्दर, विकसित और सभ्य नविन पीढ़ी हमारे देश को मिल पायेगी !