Thursday, May 6, 2010

मिथ्यांचल

नमस्ते दोस्तों,



मिथ्यांचल शीर्षक देख कर आपने शायद यह सोचा होगा कि मुझसे जरुर टाइपिंग में कोई गलती हुई है, लेकिन आपको जान कर शायद थोडा अजीब लगेगा कि यहाँ मुझसे टाइपिंग में कोई गलती नहीं हुई है, बल्कि जान बुझ कर मैंने शीर्षक "मिथ्यांचल" रखा है!



इस शीर्षक को चुनते वक़्त मेरे मन में बस एक ही तथ्य उभर रहा था, कि जिस तरह मैथिलि भाषा बोलने वाले लोगों के भूमि को "मिथलांचल" कहा गया, उसी तरह मिथ्या वचन का बड़ी सरलता से उपयोग करने वाले लोगों की भूमि (धरती) का नाम मुझे "मिथ्यांचल" से ज्यादा सटीक कुछ नहीं लगा!



आज गुस्से में आ कर अपना भडाश निकाल रहा हूँ और धरती को मिथ्यांचल नाम दे राह हूँ तो इसका मतलब यह कतई नहीं, कि मैं सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र का अवतार हूँ, मेरे मन में भी उतनी ही मिथ्या और कलेश छुपी हुई है, जितना कि किसी और मनुष्य के मन में होगा, हो सकता है की यह सब मुझमे कुछ ज्यादा ही हो!



अब आप यह सोंच रहे होंगे, कि आज ये अचानक मुझे क्या हो गया? जो ऐसी बहकी-बहकी बातें कर रहा हूँ मैं, तो बस इतना ही कहूँगा कि, यूँ तो मेरी सहनशीलता की परीक्षा रोज ही होती थी, किन्तु आज मेरे सहनशीलता का बाँध बुरी तरह टूट गया, और भडाश निकालने के लिए लिखने बैठ गया मैं!



आज जहाँ देखिये वहां झूठ का ही पुलिंदा नज़र आएगा आपको, दफ्तर में बॉस की झूठी तारीफ़ करो तो तरक्की, न करो तो तबादला! क्लास में देर से पहुचो, झूठा बहाना बनाओ तो एंट्री , सच कह दो की नींद नहीं खुली, तो क्लास से बहार! बैंक में सच बात बता कर लोन मांगो तो लोन नहीं मिलेगा, झूठ कह कर और घुश दे कर लोन मांगो तो तुरंत मिल जायेगा! बीबी को सच बोलो तो शक करेगी, झूठ बोलो तो मान जाएगी! अब तो भिखारी भी झूठ बोल कर ही भीख मांगते हैं! और तो और, ट्रेन में बिना टिकेट यात्रा करने वाले लोग ज्यादा शान से चलने लगे हैं, साथ ही ट्रेन में मौजूद टी.टी को मामा कह कर संबोधित करने लगे हैं, कहें भी क्यूँ ना? ये मामा ५० रु की टिकेट के बदले २० रु ही ले कर छोड़ जो देता है! राजनेता से लेकर अपने दोस्त और रिश्तेदारों तक की हशी में भी एक झूठ दबा हुआ साफ़ नज़र आ जायेगा आपको, हशी तो हशी, अंशु तक झूठे हो गए हैं! और हाँ, अगर आप किसी दोस्त या परिजन के मुश्किल और मुशीबत भरे हालत में उसकी मदद करने का सोंच रहे हैं, तो यह कार्य भूल से भी न करें, वरना अंत में यह अवश्य सुनने को मिलेगा की "तुमने तो मेरी मदद स्वार्थ वस् की थी"! कुछ तो यह कहने से भी नहीं चुकेंगे की "तुम सब एक जैसे हो, डबल क्रोस करते हो", उनमे से भी थोड़े एक तो सबके गुरु साबित होंगे, क्यूंकि आप उन्हें जिस खड्डे में गिरने से बचा रहे होंगे, वो आपको ही उस खड्डे में धकेल कर, और आपके सर पर ही पाँव रख कर उस खड्डे को पार कर जायेंगे!



अब आप ही बताइए, क्या ऐसी परिस्थितियों में धरती को "मिथ्यांचल" कहना गलत होगा? क्या मैं और आप उपरोक्त बातों से इनकार करने का बुता रखते हैं? हो सकता है की कुछ लोग मेरे इस अर्टिकल से इत्तिफाक या सहमति न रखते हों, तो उनसे ये "मिथ्यांचल वाशी" पहले ही क्षमा मांग लेना चाहेगा! धन्यवाद!







अमित~~

5 comments:

Divya said...

मैं पूरी तरह से आपके साथ सहमत हूँ.

adhuri baaten¤¤~~ said...

dhanyawaad divya ji, aapko yaha dekh kar behadd khushi hui

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

ITS SO TRUE AMIT N U R SUCH A WONDERFUL WRITER......GOOD WORK KEEP IT UP!!!EVERYBODY LIES BUT EACH PERSON EXPECTS OTHER TO BE TRUE.....!!!

adhuri baaten¤¤~~ said...

dhanyawaad Dr.pragati, aapko yaha dekh kar or aapki tippani ko paddh kar mujhe bahut he khushi hui,,,



dhanyawaad...