रातें तो हमेशा काली थीं,
अब दिन भी मेरा अंधेरा हैं,
कबसे आश लगा बैठा हूँ,
नहीं दीखता कहीं सबेरा है,
तुम ही बोलो माँ अब मैं क्या करूँ ?
पता नहीं इस पगडण्डी पर,
कितने ठोकर और पड़ेंगे,
आगे बढते हुए पाँव में,
कितने कांटें और चुभेंगे,
तुम ही बोलो माँ अब मैं क्या करूँ ?
जीवन के इस पगडण्डी पर,
खो बैठा हूँ शायद खुदको,
कदम बढाता हूँ आगे जब,
राह चुभते बन कंकड़-पत्थर,
तुम ही बोलो माँ अब मैं क्या करूँ ?
आंशु रोक रखे हैं मैंने,
पर दिल की धड़कन तेज है,
थक चुका हूँ मैं अब अकेला,
धुन्ड़ता हुआ बस एक सवेरा,
अगर मिला ना वो अब भी मुझको !
तो तुम ही बोलो माँ अब मैं क्या करूँ ?
अमित~~
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9 comments:
"maa ab kya karun........"
duniya ki reet nirali hai, bhagwan ne jab hame banaya aur paya ki wo harsamay hamare saath to rah nahi sakta, isliye Maa ke roop ek bhagwan de gaya, aur hame jab bhi koi problem hoti hai, jab bhi khushi hoti hai.........ham sab se pahle ussi ko dhundhte hain........
bahut khubsurat doctor!!
padh ke aacha laga..............
tum he bolo maa ab main kya karun?....माँ की याद हर उसपल सबसे पहले आती है जब अकेलेपन का एहसास सहा नहीं जाता .....और माँ ही वो है जो उस दर्द को बिना कहे ही महसूस कर पाती है .. और बिना बोले तुम्हारे साथ हर पल होने का आश्वासन भी दे जाती है .सही कहा मुकेश ने भगवन सब जगह कंहा रहता है ..माँ ही उसका प्रतिरूप है...तुम्हारी इन पंक्तियों में सादगी के साथ स्वीकारोक्ति है अमित ..माँ की ममता..कितनी ज़रूरी है.....बस जल्दी से अपनी मम्मा के पास चले जाओ ....सीधे दिल से निकली आवाज़ दिल तक पहुचने की योग्यता है अमित ....ढेर सारा प्यार
uttam rachna amit ....maa se pyara aur koi nahi hai...tumhari kavita ne iska mahatav aur badha diya...
keeo writing more...[:)]
जुली, मुकेश भैया, साकेत, अंजना दीदी और दीप्ती! मेरे इस कविता पर आप सभी कि टिप्पणियां देख कर बहुत ही अच्छा लग रहा है, आपकी टिप्पणियों और इनके लिए दिए गए आपके बहुमूल्य समय के लिए आप सभी का कोटि कोटि धन्यवाद!
Maa ke Ehsaaso ki ungali pakad aage badhte chale chalo bas....
@ preeti di : didi aap ko yaha dekh kar bahut he khushi hui,, aapki pratikriyaen or sujhaav mere raah ko or bhi saral bana dengi :)
dhanyawaad didi
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