Monday, April 5, 2010

अधुरा बचपन

कल अचानक किसी सज्जन के ब्लॉग की लिंक मिली, और ब्लॉग पर पहुँच कर पता चला की उन सज्जन को तो मै कई वर्षों से जनता हूँ, काफी समय से उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया है, इसी वजह से शायद उनके ब्लॉग के सम्बन्ध में मुझे कोई जानकारी नहीं थी, खैर, उनके ब्लॉग में एक बड़ा ही अच्छा आर्टिकल देखा, आर्टिकल दादी और पोते के रिश्ते पर आधारित था, आर्टिकल का हर हिस्सा यही कहता था की एक दादी अपने पोते से कितना प्यार करती है, किस तरह पोते अपनी दादी से रातों में कहानियां सुनते हुए सोया करते हैं, और किस तरह दादी उसके पोते के खिलाफ एक भी बुरी बात सह नहीं सकती!

इस आर्टिकल को पढ़ते वक़्त मन में एक अजीब से जलन की भाव आ रही थी, खुद के अभागेपन पर तो गुस्सा आ ही रहा था, साथ ही अपने दादी, दादा, नाना और नानी पर भी गुस्सा आ रहा था, मेरे इस गुस्से का कारण भी शायद सही था, क्युकी बचपन से जिसने दादा, दादी, नाना या नानी का प्यार क्षण भर के लिए भी न पाया हो, उसे दूसरों के मुह से दादी, दादा, नानी और नाना के प्यार और किस्से कहानियों की बातें सुन कर शायद ऐसा ही महसूस होगा! आज तक हॉस्टल में भी जब मेरे दोस्त मुझे अपने दादा या दादी के लाड प्यार की बातें बताते थे, तब भी मुझे ऐसा ही महसूस होता था, लेकिन आज जलन इतनी बढ गई की हाथ लिखने तक को उठ पड़े!

मेरी नानी को तो मै कोई दोष न ही दूँ तो बेहतर होगा, क्यूंकि वो बिचारी तो तब ही भगवन को प्यारी हो गई थी , जब मेरी माँ केवल १२ वर्ष की थी, तब तो इस दुनिया में मेरा नामो-निशाँ तक नहीं था, लेकिन जब बात दादी, दादा, और नाना पर आ कर रूकती है, तब मेरे मन में ढेरो सवाल उठने लगते हैं, मनन पूछने लगता है की आखिर हम दोनों भाइयों का कुशुर क्या था? यही की हमसे पहले हमारे दादा और दादी के ९ पोते और ५ पोतियाँ हो चुके थे, इसी लिए उनके मन में हमारे प्रति कोई लगाव ही नहीं बचा था, बचपन में हमारे सामने हमारे ही दादा दादी अपने दुसरे पोते पोतियों को मेले घुमाने ले जाते थे, लेकिन कभी हमसे उन्होंने पुचा तक नहीं, की क्या हम भी उनके साथ घुमने आना चाहते है? जब हमारे चचेरे भाई बहिन मेले से वापिस आते, तो उनके पास मेले से ख़रीदे हुए खिलोने होते, वे लोग हमें उन खिलोनो को दिखा कर खुद में इतराते, लेकिन हम बिचारे दोनों भाई मन ही मन ये सोच कर रह जाते, की उनके पास मिटटी के खिलोने है तो क्या हुआ, हमारे पास उनसे अच्छे खिलोने है, जो की बैट्री से चलते है, लेकिन मन में ये मलाल जरुर रह जाता था, की हमें दादा दादी ने कुछ नहीं दिलवाया, हमारे शहर में एक बड़ा ही फेमस २ दिनों का मेला लगता है, जिसे लोग "तपो वन" के मेले के नाम से जानते है, इस मेले में आपको ज्यादातर बच्चे अपने दादा दादी के साथ ही दिखेंगे, लेकिन आपको जान कर बड़ा आश्चर्य होगा, की मैंने आज तक वो मेला नहीं देखा है! और कारण बस इतनी सी थी, की पापा तो काम में हमेशा व्यस्त रहे और माँ रीती रिवाजो से बंधे रहने के कारण घर से अकेली बहार नहीं जा सकती थी, और हमारे प्रिय दादा दादी के लिए तो हम शायद इस दुनिया में रहते ही नहीं थे! दादा दादी की एक और भी खासियत थी, कही भी जाये, कभी भी जाये, अपने नाती नातनियों के लिए खिलोने खरीदना नहीं भूलते थे, लेकिन हम दोनों पोते ही शायद उनके आँखों में चुभते थे, कभी उनके मन में तनिक ख्याल तक नहीं आता की हमें भी थोडा प्यार दे दें , लेकिन हाँ, दादी को अपने बेटे (मेरे पिता) पर बड़ा प्यार आता था, क्यूंकि खुद के खर्चे के लिए बेटे से पैसे जो मिलते थे, हसी आती है जब इस विषय पर सोचता हूँ तो, की किस कदर लोग अपने स्वार्थ वस् कही भी झुक जाते हैं, और स्वार्थ पूरा होते ही गिरगिट के तरह रंग बदल लेते हैं!

अब बात आती है हमारे श्री श्री १०८ नाना जी की, इनका भी कुछ ऐसा ही हाल था, हमसे २०-२० साल बड़े मौसेरे भाइयों को तो नाना जी का खूब प्यार मिला, लेकिन हम २ भाई ही शायद करमजले पैदा हुए थे, हमारे पैदा होने से पहले ही नाना जी के ४ पोते भी पैदा हो चुके थे, अब नाना जी को अपने पोतो के अलावा दुनिया कही नज़र ही नहीं आती थी शायद, उनका सोचना था की उनकी जिम्मेदारी केवल उनके पोतों के प्रति ही है, नातियो के प्रति अब उनकी कोई जम्मेदारी नहीं, और इस बात का खामियाजा भुगतने के लिए भी बस हम २ भाई ही बच गए थे! दादा दादी के लाड प्यार और किस्से कहानियों से तो वंचित रह ही गए थे हम, अब नाना ने भी नकार दिया!

कभी कभी सोंचता हूँ की अजीब खेल है किस्मत का भी, जिसने हमें कभी ये जान्ने तक का मौका नहीं दिया की दादा दादी और नाना नानी किस तरह किस्से और कहानियां सुनते हैं, किस तरह दादी को पोते से प्यार और लगाव होता है, लोग कहते है की दादी वो जादूगर होती है, जिसके प्राण उसके पोते रूपी तोते के अन्दर होता है, लेकिन किस्मत का खेल देखिये, हमें तो कभी ऐसा तोता बन्ने का मौका ही नहीं मिला, दादी को उसका कुरूप पोता भी सुन्दर दीखता है, लेकिन, लेकिन यहाँ तो हमें यही पता चल पाया, की "दादी को पोता दीखता ही नहीं है", हमारे लिए तो हमारे माता पिता ही हमारे दादा दादी और हमारे माता पिता ही हमारे नाना नानी थे, जो भी प्यार मिला, बस उनसे ही मिला, खिलौने भी उन्होंने ही दिलाया और कहानियां भी उन्होंने ही सुनाई!

कितना अजीब लगता है, लोग इन छोटी छोटी बातों का ख़याल नहीं रखते, लेकिन शायद ये भूल जाते हैं की ये छोटी बातें किसी के लिए बहुत मायने रखती हैं, और ये ही बातें जब बुजुर्ग नज़र अंदाज़ कर जाते है, तो बच्चों के मन में ये बात इस कदर घर कर जाती हैं की विष का एक ज्वालामुखी बना देती हैं, बच्चे अपनी पूरी जिंदगी इन बातों को जब जब याद करते हैं तब तब उनके मनन की ये ज्वालामुखी फट पड़ती है, और वो खुद को ही अभागा समझ कर सांत हो जाते हैं, मैंने आज ये बात अपने इस ब्लॉग में इस लिया रखना उचित समझा, ताकि मेरे ही जैसे किसी एक भी बच्चे के बुजुर्ग अगर इस कहानी को पढ़ कर या सुन कर उन्हें थोडा भी लाड प्यार दे दें, तो मै समझूंगा की मेरे इस आपबीती को लिखने का उद्देश्य सफल रहा!





अमित~~

13 comments:

SpLeNdIfErOuS StalWaRt said...
This comment has been removed by the author.
हरकीरत ' हीर' said...

लोग इन छोटी छोटी बातों का ख़याल नहीं रखते, लेकिन शायद ये भूल जाते हैं की ये छोटी बातें किसी के लिए बहुत मायने रखती हैं, और ये ही बातें जब बुजुर्ग नज़र अंदाज़ कर जाते है, तो बच्चों के मन में ये बात इस कदर घर कर जाती हैं की विष का एक ज्वालामुखी बना देती हैं, बच्चे अपनी पूरी जिंदगी इन बातों को जब जब याद करते हैं तब तब उनके मनन की ये ज्वालामुखी फट पड़ती है.....

सही कहा आपने....भावनाएं बच्चों की हों या बड़ों की सभी का उचित मान होना चाहिए ......!!

Unknown said...

haan bachpan ki jab akanshayein pori nahi hoti to man ko aghat lagti hai.....hamare ssath to aisa kuch nhi hua hai par hamari bhi dadi ji ka indifference attitude hum bhaiye -behno ke saath bhi hua hai especially jab unke nati-natine aa jaaya karti thi to jaise hum exists hi nahi karte hain....

ajeeb baat hai itne bade hone par bhi wo baatein man se nahi jaati ...aur wo adhura bachpan ki vedbnaiye ab bhi utni hi buri lagti hai jitni us waqt .....

filhaal mujhe unka pyar bhi mila hai par uke indifference attitude hone ke bawjood.....pata nahi shayd wo kuch aur hi sochte the...

par nana-naani ka pyar to bahut mila....shayad yahi wajah hai unse shikayat bhi nahi hai hame..

bahut hi vaastivikta bhari baat aapne ki hai Dr amit jee.....

adhuri baaten¤¤~~ said...

bahut bahut dhanyawaad aap sabhi ka, aapki pratikriyaaen mujhe likhne ki or bhi jyada prerna deti hain :) koti koti dhanyawaad

Anonymous said...

apni bhi kuch yahi halat rahi thi dost

Unknown said...

gr 8 work done ..u r poet cam writter i don no..but reading such good paunches is very much wonderful..keep it up all hte very best for this carrier ..hahahaha

Navjyot said...

Kitna dard chupa hai amit tere dil mein.... :(

anilanjana said...

अमित जो कमी तुम्हे खली उसकी भरपाई तो नहीं हो सकती .... बस इस एहसास को जीवंत रखना ...की तुम्हे न सिर्फ अपनों को..बल्कि उनसब अपनों को जिनका कोई नहीं है .....उन में ढेर सारा प्यार बांटना ..देखना कितनी संतुष्टि मिलेगी ..और शायद तुम्हारे दिल पे मलहम का काम कर सके...इश्वर तुम्हे इतनी शक्ति दे की जो भी तुम्हारे संपर्क में आये .. वो खुद को भावनात्मक रूप से सुरक्षित पाए ...

choti si kahani se said...

aajkal ekal parivaron me ye samsya aur bhi bhayawah hoti ja rahi hai ki bachchon ko lori aur kahaniyan sunanae wale bujurgon ki kami hai...aur jin sajjan ki tum bat kar rahe ho unka article maine bhi padha tha " dadi aur tall, dark , handsome"...mihir mishra...ummid nahi thi ki koi is najariye se bhi dekhega us article ko....amit! badhayi ho, tumne to is article ke dwara aajkal ke tej bhagte daur ke bachchon ke akelepan ko bhi jubande dali.....kash tumhare article ko padh kar koi apne nati-pote ke sath thodha quality time bitane ki soche.....

adhuri baaten¤¤~~ said...

@ अंजना दीदी: आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, जीवन में हमेशा आपके इस मस्वारे का अनुसरण करने कि यथा संभव कोशिश करूँगा!

@ रोली आंटी: कमेंट्स के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आंटी, आपको यहाँ देख कर बहुत ख़ुशी हुई, और हाँ, आपने ठीक पहचाना वो सज्जन मिहिर ही है!

Anonymous said...
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sakshi said...

u'r story is awesome man. which touched my heart.
tumhari ye kahani kuch kuch meri lyf se b judi hui hai. MEri nani ka behavior b kuch aisa tha mere liye. unhe mujhse aur mere bhaiyo se jyada meri masiaur mama k bacche jyada acche lagte the aur shayad mujhe yaha ye sa\b nai kehna chaiye kyuki ab meri nani is duniya me nai hai. mujhe ye nai pata ki wo aisa intentionally karti thi ya mujhe aisa feel hota tha.but i felt really bad for her behavior.

sakshi said...

u'r story is awesome man which touched my heart.
tumhari ye kahani kuch kuch meri lyf se b judi hui hai. Meri nani ka behavior b kuch aisa tha mere liye. unhe mujhse aur mere bhaiyo se jyada meri masi aur mama k bacche jyada acche lagte the aur shayad mujhe yaha ye sab nai kehna chaiye kyuki ab meri nani is duniya me nai hai. mujhe ye nai pata ki wo aisa intentionally karti thi ya mujhe aisa feel hota tha.but i felt really bad for her behavior.