नोटों की माला पहन के माया, पीछे छोड़ गई हर माया,
राज ने राज़ दबा रक्खे हैं, बाला के बाल छुपा रक्खे हैं!
लालू लाल, मुलायम पीले, जाया के जूते, ममता के बूते,
काले कोयले के निचे शीबू ने, सारे रंग दबा रक्खे हैं!
ताबूत से ले कर तोपों तक, मंदिर से ले कर मस्ज़िद तक,
जात, धर्म के दंगों से, भारत को रण क्षेत्र बना रक्खे हैं!
खुद को कह कर गाँधीवादी, नोटों की गड्डी छिपा बैठे हैं,
गाँधी को परमपिता कह कर ये, पत्ते पर उन्हें बिठा रक्खे हैं!
गाँधी के मूल विचारों का ये, हर तौर पे मज़ाक बना रक्खे हैं,
बोश,तिलक,आजाद के बलि का, नोटों से मोल लगा बैठे है!
चारे से ले कर अलकतरा तक, एक एक कर सब चबा बैठे हैं,
आतंक से ले कर उग्रवाद तक, हर मुद्दे को भुना बैठे हैं!
रोक सके न और कहीं जब, नारी को मुट्ठी में दबा बैठे हैं,
विधेयक की गाथा गा गा कर, नारी के राह में कांटें बीचा रक्खे हैं!
सोता हुआ बेटा कब जागे, भारती ये आश लगा बैठी है,
कब मिलेगी उसको मुक्ति, अब तो बस थोड़ी ही सांस बची है!
अमित~~
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3 comments:
bhut khoob .!!!!!!! Dr tum bhi bahut accha lkhte ho....bahut hi satik aur sahi vardan prastutu ki hai.....ek shabd par aapki pakad hai .... carry it on Dr....
i liked it vry much.........
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